भूखे लोगों की आवाज हैं पत्रकार विजय विनीत (vijay vineet)

० कायम की है साहसिक पत्रकारिता की अनूठी मिसाल


रामजी प्रसाद "भैरव"


वरिष्ठ साहित्यकार एवं लेखक


घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है।


बताओ कैसे लिख दूं धूप फाल्गुन की नशीली है।।


              मशहूर शायर अदम गोंडवी की नज्म जैसी है खांटी बनारसी पत्रकार विजय विनीत (vijay vineet) की कलम की धार। इनका तेवर न अफसरों की धौंस-दपट बर्दाश्त करता है, न नेताओं की दबंगई। बनारस में मुसहरों के घास खाने का मुद्दा रहा हो या फिर मीरजापुर में स्कूली बच्चों को नमक-रोटी खिलाने का। नौकरशाही की गुर्राहट के आगे न झुके... न टूटे...न हारे। हमेशा उम्दा काम को सराहा और बेइमानों व भ्रष्टाचारियों को मुंहतोड़ जवाब दिया। चाहे वो गुंडे-बदमाश, शराब माफिया और देश के बड़े घोटालेबाज ही क्यों न रहें हों? उत्तर भारत में इन्हें बेहतरीन रिपोर्टस लिखने वाले ईमानदार पत्रकार के रूप में जाना जाता है।



विजय विनीत ने यूपी के तराई इलाकों में आतंकवाद और सांप्रदायिक दंगों की उस समय रिपोर्टिंग की, जब लोग साहसिक पत्रकारिता करने के बारे में सोच भी नहीं पाते थे। उन्होंने न सिर्फ पत्रकारिता को नैतिक स्वर दिया, बल्कि पीड़ित समाज के उत्थान के लिए कई बार अपने जीवन की बाजी भी लगाई। वह न कभी झुके, न टूटे और न कभी हताश हुए। पेशेवर नहीं, एक जिम्मेदार नागरिक की तरह देशप्रेम ही नहीं, सामाजिक दायित्वों को बखूबी निभाया है। सरकार कोई भी रही हो, उसका प्रवक्ता अथवा सुपारी किलर बनकर कभी काम नहीं किया।


बेहद जुझारू, अक्खड़, ठेठ बनारसी पत्रकार विजय हर समय  पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत ‘तटस्थता’ का और पाठकों के प्रति ईमानदारी का मूल्य अदा किया। इनकी रचनाओं में जीवन का मुक्त सच और संघर्ष झलकते हैं। देश के किसानों और आम आदमी की विवशता का दर्दनाक चित्रण करना विजय विनीत का प्रिय शगल रहा है। सरकार कोई भी रही हो, झुग्गी-झोपड़ी में किसी तरह बसर करने वालों का दर्द और दुश्वारियां इन्हें कभी बर्दाश्त नहीं हुईं।   ग्रामीण परिवेश में बदरंग जन-जीवन और कमजोर हो चुकी जिंदगियों को बचाने में, भ्रष्टाचारियों को राष्ट्रवाद और समाजवाद का इंजेक्शन लगाने में कभी पीछे नहीं रहे।


विजय विनीत हमेशा मानते रहे हैं कि पत्रकार खुद खबर नहीं होते, लेकिन समाज उससे हमेशा ईमानदारी की मांग जरूर करता है। पत्रकार के लिए खबर से अधिक अहम कुछ नहीं है, अपनी जिंदगी भी नहीं। साल 2002 में बनारस के ओंकालेश्वर मंदिर परिसर में हुए दंगे में इनके सिर में गंभीर चोटें आईं। दंगाइयों के हमले में जख्मी होने पर कई टांके लगे। फिर भी बुलंद हौसले के साथ खबरें लिखीं।



समाज में लगातार बढ़ती बेईमानी, छल-कपट और सियासी हथकंडों के दौर में भी विजय विनीत ने कभी किसी से समझौता नहीं किया।  तमाम मौके आए जब झूठ के खिलाफ, पाखंड के खिलाफ पूरे दमखम और साहस के साथ कलम की ताकत से लड़े। खासतौर पर समाज के आखिरी आदमी के मुद्दों पर किसी खबर को मरने नहीं दिया। चाहे एमसीसी के नक्सलियों के गढ़ रहे नौगढ़ (चंदौली) के कुबराडीह में भुखमरी का मुद्दा रहा हो या फिर भूख से बिलखती महिलाओं और तड़पते लकड़ी चबाते बच्चों की बेबसी। समाज के बेबस लोगों को अपनी कलम की ताकत देकर तरक्की की नई इबारत लिखी। श्री विनीत के संघर्षों की देन है कि नौगढ़ के कई गांवों में अब कांगाली नहीं, हरियाली है। रूदन नहीं, मंगल गीत गाए जा रहे हैं। साइकिल के बदले मोटरसाइकिल और नंग-धड़ंग बच्चे और अधनंगे बूढ़े अब चमचमाते कपड़ों से लैस हैं। यकीन न हो तो कुबराडीह जाकर देख लीजिए। यह वही गांव  है जहां भूख से तीन लोगों की मौत हो गई थी। विजय विनीत की रपट छपने पर संसद गरमा गई थी। सिर्फ पूवार्चल ही नहीं, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के तराई इलाकों में जिन रास्तों पर कंक्रीट नहीं ढले थे..., जिन छतों को लिंटर नहीं मिला था..., जो पैर चमड़े के जूते से दूर थे..., जिन हाथों ने कभी घड़ी नहीं पहनी और जो कमजोर आंखें चश्मों के लिए मोहताज़ थे, उनके उत्थान के लिए..., उनकी तरक्की के लिए... विजय विनीत एक बड़े वेग साबित हुए।



विजय विनीत ने दिल्ली, लखनऊ के तमाम तथाकथित बड़े पत्रकारों की भीड़ से अलग अपनी पहचान बनाई है। ऐसी पहचान जिन्हें समूचे उत्तर भारत में आज भी याद किया जाता है। 13 जुलाई 1991 को विजय विनीत की एक खोजी रपट ने 25 बरस बाद उन 11 निर्दोष नागरिकों के परिजनों को न्याय दिलाई जिन्हें पीलीभीत पुलिस ने उग्रवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया था। मारे गए सभी सिख तीर्थयात्रा से लौट रहे थे। सीबीआई के विशेष जज लल्लू सिंह ने 29 मार्च 2016 को फैसला सुनाते हुए 47 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। यह घटना उस समय की है जब तराई का सिख आतंकवाद यथार्थ का कब्रिस्तान था। इस कब्रिस्तान में विजय विनीत ने अनगिनत शानदार रिपोटर्स लिखी।


ऊधमसिंहनगर में 16 अक्टूबर 1991 को हुए शक्तिशाली आतंकी बम विस्फोट में करीब 95 लोगों की मौत हुई और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए। इस घटना के लिए दोषी आतंकवादियों को पुलिस तभी गिरफ्तार कर पाई जब दैनिक जागरण में विजय विनीत की खोजी रपट छपी। तराई की दूसरी बड़ी घटना तीन अगस्त 1992 को पीलीभीत में हुई जब आतंकियों ने 29 ग्रामीणों का अपहरण कर लिया। विनीत बताते हैं, "उन दिनों पीलीभीत में गढ़ा रेंज के जंगल में कुख्यात आतंकवादी सुखदेव की समानांतर सरकार चलती थी और उसका हुक्म भी।


पुलिस जब ग्रामीणों को नहीं ढूंढ पाई तो जान हथेली पर रखकर विजय विनीत खुद अपने साथियों को लेकर निकले। आतंकियों के खौफ से जिस जंगल में पुलिस जाने से डरती थी... जहां सांपों और खतरनाक वन्य जीवों का बसेरा था..., वहां भी जाने से  नहीं डरे। अपहृत लोगों का सुराग लगाने की कवायद में विजय विनीत ने डरावनी रात गढ़ा रेंज के जंगल में गुजारी। भूख बदाश्त नहीं हुई तो पेड़ों के पत्ते खाए और गड्ढों में एकत्र बारिश के पानी से प्यास बुझाई। लाशें ढूंढने के बाद ही वो जंगल से निकले और पुलिस को सूचना दी।"


विजय विनीत बताते हैं कि दोनों घटनाओं ने हमें खुरदरी चट्टानों से टकराने की ताकत दी। यह ताकत..., यह हौसला..., जीवन की कठोर सच्चाइयों की पटकथा निडर होकर लिखने का हुनर सब कुछ अपने गुरु वरिष्ठ पत्रकार बच्चन सिंहजी से सीखा था।


कलम के जादूगर विजय विनीत ने स्वस्थ समाज के लिए आतंकवाद के खिलाफ..., भ्रष्टाचार के खिलाफ..., तमाम बिद्रुपों के खिलाफ अनगिनत रपटें लिखीं। समाज की खुरदरी और विशाल चट्टानों को पिघलाने में कामयाब रहे। कठिन चुनौतियों के बावजूद न कभी झुके, न कभी टूटे...। बदायूं का दंगा रहा हो अथवा बरेली का। बुलंद हौसले के साथ शोषित समाज के लिए हमेशा लड़ते रहे। पत्रकारिता को हमेशा को आजीविका का साधन नहीं, मिशन माना। यही वजह रही कि उन्होंने न तो कभी मर्यादा के पहाड़ को लांघा और न ही पथरीले रास्तों पर फिसले। सिर्फ दिलेरी ही नहीं..., हौसला ही नहीं..., अपनी रचनाओं में समाज को बोल-चाल की भाषा ही परोसी।


विजय विनीत देश के पहले भारतीय पत्रकार हैं जिन्होंने हिन्दी भाषियों को पहली बार अपनी कलम से चालीस दिन तक अमेरिका की सैर कराई। अमेरिकी रीति-रिवाजों और परंपराओं को खांटी बनारसी अंदाज में परोसा। अमेरिका में जितने दिन रहे, लगातार चलती रही इनकी कलम।  इनकी शोहरत के चलते इनसे साहसिक पत्रकारिता का गुर सीखने के लिए 20 अगस्त 2017 को अमेरिका के न्यू यार्क स्थित कोलंबिया जर्नलिज्म स्कूल-ब्राडवे के स्टूडेंट बनारस आए। विनीत के अनुभवों को समूचे अमेरिका में साझा किया। 



विजय विनीत सिर्फ कलमकार ही नहीं, जर्नलिस्ट एक्टिविस्ट भी हैं। अपने गृह जनपद चंदौली की कर्मनाशा नदी का कलंक धोने से लिए सालों से जागरूकता अभियान चला रहे हैं। इस बाबत इन्होंने कई डाक्युमेंट्री बनाई है और अनवरत लेख लिख रहे हैं। बनारस के बागवानों और किसानों के उत्थान के लिए भी अभिनव प्रयास कर रहे हैं। पूर्वांचल से विलुप्त हो रहे बनारसी नीबू, बनारसी कटहल, बनारसी आम, बनारसी मुसम्मी, बनारसी चंदन, बनारसी तिपारी, बनारसी फालसा आदि फलदार पेड़ों का वजूद मिटने से बचाने की मुहिम में भी जुटे हैं। अपने किसान मित्र शैलेंद्र सिंह रघुवंशी के साथ मिलकर बनारस के चोलापुर में ऐसे बागों की नर्सरी विकसित की हैं, जिनका वजूद मिटने की कगार पर है। विलुप्त प्रजातियों के पौधे शैलेंद्र की नर्सरी के ग्रीन हाउस में तैयार किए जा रहे हैं।


साहसिक पत्रकारिता, अल्पसंख्यक हितों की रक्षा और मानवाधिकार उलंघन रोकने के क्षेत्र में किए गए अतुलनीय प्रयास के लिए वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत को कई अवार्ड मिल चुके हैं। इसमें पीपुल्स विजलेंस कमेटी आन ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) एवं ह्यूमन राइट्स ला नेटवर्क (एचआरएलएन) का जनमित्र अवार्ड भी शामिल है। 10 दिसंबर 2013 को दिल्ली के रफी मार्ग स्थित कांस्ट्यूशन क्लब के स्पीकर हाल में इन्हें सम्मानित किया गया था। दो फरवरी 2018 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग ने सारस्वत सम्मान दिया। सिख आतंकवाद के दौर में बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए साहित्य कला अकादमी ने अक्टूबर 1991 में बेस्ट जर्नलिज्म अवार्ड से नवाजा था। इंटिग्रेटेड सोसाइटी आफ मीडिया प्रोफेशनल्स ने तिलक सम्मान, काशी पत्रकार संघ ने सुशील त्रिपाठी पत्रकारिता पुरस्कार समेत इन्हें अनगिनत अवार्ड मिल चुके हैं। खास बात यह है कि आज तक इन्होंने कोई सरकारी अवार्ड लिया ही नहीं।



 यूपी में चंदौली के चकिया प्रखंड के उतरौत गांव में 29 मार्च 1965 को किसान परिवार में जन्मे विजय विनीत के पिता डा.रणवीर सिंह पेशे से शिक्षक और चिकित्सक थे। इनके पिता इन्हें अपनी थाती सौंपना चाहते थे, लेकिन अपने लिए चुना पत्रकारिता का पथरीला रास्ता...। देश के जाने-माने अखबार दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिन्दुस्तान में लंबे समय तक साहसिक पत्रकरिता की। मौजूदा समय में वे जनसंदेश टाइम्स के वाराणसी संस्करण में सशक्त रूप से संपादकीय टीम का नेतृत्व कर रहे हैं। सोशल साइट यू-ट्यूब पर इनका चैनल झुमरी तलैया और वेबसाइट झुमरी तलैया डाट काम काफी लोकप्रिय है। विजय विनीत प्रयोगवादी संपादक, अच्छे लेखक-रिपोर्टर ही नहीं, बेहतरीन वीडियो एडिटर भी हैं।